Deputy Chief Minister Mukesh Agnihotri advocated for making a special policy for hill states in the second All India State Water Ministers Conference held in Udaipur, Rajasthan

उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दूसरे ऑल इंडिया स्टेट वाटर मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस में पहाड़ी राज्यों के लिए बने विशेष नीति बनाने की की पैरवी

राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दूसरे ऑल इंडिया स्टेट वाटर मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस(18 व 19 फरवरी )में हिमाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री श्री मुकेश अग्निहोत्री ने जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। “India-2027 – “एक जल सुरक्षित राष्ट्र” विषय पर अपने संबोधन में उन्होंने जल संकट, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और नवाचार आधारित समाधान की आवश्यकता को रेखांकित किया, जिससे जल प्रबंधन को अधिक स्थायी बनाया जा सके
सम्मेलन के पहले दिन अपने उद्बोधन में उप मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष नीति बननी चाहिए। मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि असमय बारिश और कम बर्फबारी के कारण जल स्रोतों का जल स्तर लगातार घटता जा रहा है।
वैज्ञानिक अध्ययनों का हवाला देते हुए उप मुख्यमंत्री ने बताया कि हिमालयी ग्लेशियर प्रति दशक 20-30 मीटर की दर से पिघल रहे हैं, जिससे नदी प्रवाह में अनिश्चितता बढ़ रही है और जल संकट गहरा हो रहा है। इससे पीने के पानी, सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने जलवायु-सहिष्णु नीतियों और उन्नत वैज्ञानिक हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। हमें पारम्परिक जल स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ आधुनिक तकनीक, नवाचारों और विकल्पों पर विचार करना होगा।
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल का 65 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र के तहत आता है जो केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। जिससे विकास परियोजनाओं के लिए भूमि की उपलब्धता सीमित हो जाती है। वनों के संरक्षण के रूप में हिमाचल प्रदेश का जल संरक्षण, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बचाने में बड़ा योगदान है। इसकी एवज़ में केन्द्र द्वारा हिमाचल को विशेष पैकेज दिया जाना चाहिए जो पहाड़ी क्षेत्रों की भौगोलिक और दुर्गम परिस्थितियों के अनुकूल हो। उप मुख्यमंत्री ने राज्य की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता को दोहराते हुए नीतिगत ढील और विशेष विकास प्रोत्साहन की आवश्यकता पर बल दिया जिससे पर्यावरणीय संतुलन और बुनियादी ढाँचे के विकास के बीच संतुलन बना रहे।
अग्निहोत्री ने कहा कि हमने हर घर नल तो पहुंचा तो दिये हैं लेकिन हर नल में जल पहुंचाना बड़ी चुनौती है। पानी की कमी को पूरा करने के लिए हमें वर्षा जल संग्रहण और जल स्रोत पुनर्भरण संरचनाओं को प्रोत्साहित करना होगा इसके लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष केन्द्रीय सहयोग मिलना चाहिए। उन्होंने पहाड़ी राज्यों के लिए दिये जाने वाले केन्द्रीय अनुदान में निर्धारित मापदण्डों को लचीला करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि देश भर के लिए समान रूप से तैयार की गई नीति को अमल में लाना पहाड़ी राज्यों के लिए संभव नहीं हो पाता है क्योंकि मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले पहा़ड़ी राज्यों की जटिल भौगोलिक बनावट और दुर्गम परिस्थितियों में निर्माण लागत और अन्य व्यय अधिक होता है।
उन्होंने जल जीवन मिशन के तहत अधूरी पड़ी लगभग 1000 पेयजल आपर्ति योजनाओं को पूरा करने के लिए 2000 करोड़ रुपये की मांग की। उन्होंने उच्च पर्वतीय राज्यों के लिए एक विशेष फंडिंग विंडो बनाने का प्रस्ताव रखा जिससे हिमाचल के किन्नौर, लाहौल-स्पिति और चम्बा के जनजातीय और ठण्डे क्षेत्रों में 12 महीने निर्बाध जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एंटी-फ्रीज़ जल आपूर्ति योजनाओं का निर्माण किया जा सके जिनमें इन्सुलेटेड पाइपलाइन, हीटेड टैप सिस्टम और सौर-चालित पंप शामिल हैं।
उन्होंने हिमाचल द्वारा बर्फ एवं जल संरक्षण के लिए 1269.29 करोड़ रुपये और सूखे और खराब पड़े लगभग 2000 हैंडपंपों और ट्यूबवेलों के माध्यम से ‘‘भूजल के पुनर्भरण‘‘ के लिए तैयार की गई एक विस्तृत परियोजना को अमल में लाने के लिए भी केन्द्र सरकार से वित्त पोषण की मांग की।
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में 90 फीसदी से अधिक ग्रामीण आबादी है। जिनमें से 67 प्रतिशत आबादी की आजीविका कृषि, बागवानी और सब्ज़ी उत्पादन पर निर्भर है। आधुनिक खेती में सिंचाई की ज़रूरतों को देखते हुए सिंचाई योजनाओं को बढ़ावा देना पड़ेगा। उन्होंने केंद्रीय स्वीकृति के लिए लम्बित पड़ी PMKSY-हर खेत को पानी और PMKSY-AIBP के अंतर्गत प्रस्तावित नई सतही लघु सिंचाई और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को जल्द से जल्द मंजूरी देने का भी आग्रह किया।
उप मुख्यमंत्री ने रेखंकित किया कि तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण उपनगरीय क्षेत्रों में जल और स्वच्छता की गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। उप मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्तमान योजनाएँ जैसे “जल जीवन मिशन” और “अमृत” इन क्षेत्रों की जलापूर्ति और सीवरेज आवश्यकताओं को पूरी तरह कवर नहीं कर पातीं। उपनगरीय इलाकों में जल और स्वच्छता की सुविधाएँ मुहैया करवाने व इन क्षेत्रों में व्यापक सीवरेज और स्वच्छता सेवाएँ बढ़ाने के लिए उन्होंने अलग मानदंड और समर्पित वित्तीय सहायता की मांग की।
उप मुख्यमंत्री ने “India/2047-एक जल सुरक्षित राष्ट्र” की दिशा में संकल्प के लिए हिमाचल प्रदेश की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय सरकार से अधिक उदार फंडिंग और लचीली नीतिगत सहायता की तत्काल आवश्यकता को इंगित किया।

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