बारिश ने खोली निर्माण कंपनी की पोल, ग्रामीणों का जबरदस्त विरोध किसानों के खेत तालाब में तब्दील

*पवन धीमान, हमीरपुर:*

लगातार हो रही बारिश ने राष्ट्रीय राजमार्ग-03 के निर्माण कार्य में जुटी कंपनी की लापरवाही की पोल खोलकर रख दी है। झनिक्कर, बराड़ा, समीरपुर, धर्मपुर, ठाना दरोगण और दरकोटी क्षेत्र के ग्रामीण अपनी बर्बाद हुई फसलों और अवरुद्ध रास्तों को लेकर आक्रोशित हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि निर्माण कंपनी की अव्यवस्थित कार्यप्रणाली के कारण उनके खेतों की उपजाऊ मिट्टी बह गई है, जिससे खेत अब तालाबों में तब्दील हो गए हैं।

*बच्चों की पढ़ाई से लेकर बुजुर्गों तक परेशानी*
ग्रामीणों ने बताया कि निर्माण कार्य के दौरान कंपनी ने नालियों और जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं की, जिससे बारिश का पानी खेतों में भर गया। इसके अलावा, गांव के रास्ते भी बंद हो गए हैं, जिससे बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत हो रही है और बुजुर्गों को भी घर से निकलने में परेशानी हो रही है।

*ग्रामीणों ने सड़क पर उतरकर जताया गुस्सा*
बुधवार को टपरे पंचायत के दरकोटी द्रोगण के करीब दो दर्जन से अधिक ग्रामीणों ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने मौके पर पहुंचे कंपनी के अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाते हुए तुरंत समस्या का समाधान करने की चेतावनी दी। ग्रामीणों ने कहा कि अगर जल्द ही उनकी समस्याओं का निवारण नहीं किया गया, तो वे और बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

*बाईपास निर्माण से बढ़ी मुसीबत*
दरोगण के पास प्रस्तावित बाईपास निर्माण के दौरान बारिश से मिट्टी का कटाव तेजी से हुआ है, जिससे आसपास के खेत बर्बाद हो गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर कंपनी ने पहले से ही जल निकासी और मिट्टी के कटाव को रोकने के उपाय किए होते, तो यह स्थिति नहीं आती।

*स्थानीय नेताओं ने ग्रामीणों का किया समर्थन*
इस विरोध प्रदर्शन के दौरान स्थानीय वार्ड सदस्य सुमन चौहान, जगदीश चंद्र, शक्ति चंद और आशा कुमारी सहित दर्जनों ग्रामीण मौजूद रहे। नेताओं ने कंपनी प्रशासन से मांग की कि वह तुरंत क्षतिपूर्ति का प्रबंध करे और निर्माण कार्य को ग्रामीणों की समस्याओं को ध्यान में रखकर आगे बढ़ाए।

*क्या कहती है कंपनी?*
निर्माण कंपनी के अधिकारियों ने ग्रामीणों की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए जल्द समाधान का आश्वासन दिया है। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि अब तक केवल आश्वासन ही मिले हैं, जबकि धरातल पर कोई सुधार नहीं हुआ है।

अब देखना यह है कि प्रशासन और कंपनी ग्रामीणों की मांगों पर कितनी जल्दी और प्रभावी ढंग से कार्रवाई करती है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और भी बड़ा रूप ले सकता है।

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